वन नेशन वन इलेक्शन के लिये आखिर चर्चा क्यों हो रही है ?

केंद्र सरकार ने एक राष्ट्र एक चुनाव One Nation One Election के व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया है

वन नेशन वन इलेक्शन के लिये आखिर चर्चा क्यों हो रही है ?
One Nation One Election

दिल्ली, एमपी न्यूज हिन्दी । केंद्र सरकार ने एक राष्ट्र एक चुनाव के व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया है जिसमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation,One Election) की वकालत किया इस बिल के समर्थन के पीछे सबसे बड़ा तर्क दिया जा रहा है कि इससे चुनाव में खर्च होने वाले करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं

दरअसल आपको लग रहा होगा कि इसकी चर्चा अभी ही शुरू की गई है लेकिन वास्तविकता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका जिक्र 2014 में ही कर दी दिया था इसके बाद भाजपा ने एक राष्ट्र एक चुनाव को अपने घोषणा पत्र में भी रखा परंतु 2014 से 2017 के बीच इस पर कोई काम नहीं किया गया लेकिन जैसे ही 2019 का लोकसभा चुनाव दिखा तो भाजपा को एक बार पुनः याद आया कि देश में एक बार चुनाव किया जाना चाहिए और इन्होंने एक बार फिर अपने घोषणा पत्र में एक राष्ट्र एक चुनाव का मुद्दा बनाया, यह मुद्दा गर्माया ही था कि लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी की भारी बहुमतों से पुनः सरकार बन गई, सरकार बनने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी ने जून 2019 को ऑल पार्टी मीटिंग रखा जिसमे उनने एक राष्ट्र एक चुनाव का जिक्र किया और अपने मंत्रियों से कहा कि देशभर में 25 से ज्यादा वेबीनार एक देश एक चुनाव (One Nation,One Election) के संबंध में कराए जाएं

इसी क्रम से वर्ष 2020 तक 4 से 5 वेबीनार पूरे भी हो गए थे इसके बाद नरेंद्र मोदी ने 26 नवंबर 2020 को presiding कमेटी की बैठक की और इसमें देश में एक बार चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा, इसके बाद दिसंबर 2020 में निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा से पूछा गया कि क्या हम भारत में पांच साल में एक बार चुनाव कराने में सक्षम है, तो उनका जवाब था कि “हां” ‘हम एक साथ चुनाव कराने में सक्षम है’ आपको बता दें कि इस पूरे संबंध में प्रधानमंत्री की मंशा है कि हमारे देश में जिन तीन चुनाव पर जनता प्रत्यक्ष रूप से वोट करती है उन्हें एक साथ एक बार में करा लिया जाए। 

आपको महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए हम बताते हैं कि साल 1951 से 1967 तक भारत में तीनों स्तरों पर चुनाव एक साथ ही होते थे लेकिन 1967 में सत्ता परिवर्तन के बाद इंदिरा गांधी आई जिनका विरोध 1969 में कांग्रेस पार्टी के लोगों ने ही शुरू कर दिया जिसमें मुख्य रूप से के.कामराज,मोरारजी देसाई,नीलम संजीवा रेड्डी,अशोक मेहता एवं अन्य नेताओं ने भूमिका निभाई इसके बाद इंदिरा गांधी ने पार्टी का विभाजन कर लिया और कांग्रेस,आर के नाम से नई पार्टी का गठन किया इस दौरान इंदिरा सरकार अल्पमत में आ गई तो इंदिरा गांधी ने 1970 में राष्ट्रपति से कहकर लोकसभा चुनाव को 1971 में करवाने को कहा जिसमें राष्ट्रपति ने सहमति दे दी और 1971 में चुनाव करवा दिए इसी दौरान कई विधानसभा के नेताओं ने भी अपनी सरकार के प्रति नाराजगी जताई और कार्यकाल खत्म होने के पहले ही राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने को कहा इसके बाद देशभर में चुनावी माहौल का उथल-पुथल हो गया और यहीं से एक राष्ट्र एक चुनाव का क्रम बिगड़ गया इसके बाद यह सिलसिला नहीं थमा और आगे बढ़ता ही गया

एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर पिछली प्रत्येक सरकारों के द्वारा प्रयास किया जा रहा है लेकिन एक बार में चुनाव संपन्न कर लिया जाए यह करवाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सिद्ध हो रहा है 
ऐसा नहीं है कि एक राष्ट्र एक चुनाव को सिर्फ भारत द्वारा ही अपनाया जा रहा है बल्कि यह पहले से ही अमेरिका ब्रिटेन जैसे बड़े-बड़े देशों में विद्यमान है इसलिए भारत में भी इस प्रक्रिया को लागू करना है तो हमें चीते की रफ्तार की बजाय कछुए की गति पर ध्यान देना होगा

यदि हमें भारत में एक साथ चुनाव करना है तो इसके संबंध में हमारे पास कुछ विकल्प हैं

1. कोई बदलाव ना करना 
2. लोकसभा चुनाव अलग से एवं विधानसभा और जिला स्तरीय चुनाव को एक साथ एक बार में पूरा कराना 
3. लोकसभा और विधनसभा को एक साथ कराना और जिला स्तरीय चुनाव की योजना अलग से 
4. प्रत्येक 2.5 साल में चुनाव योजना 
5. सालभर में अलग अलग दिनांक पर होने वाले चुनावों को एक बार तिथि को निर्धारित कर संपन्न करवाना