सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, अमान्य विवाह से जन्मे बच्चे भी संपत्ति पर कर सकते हैं दावा
सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य विवाह से जन्मे बच्चे की याचिका में अहम फैसला सुनते हुए कहा कि अमान्य विवाह से जन्मे बच्चे भी अपने माता- पिता की संपत्ति पर अपना दावा कर सकते हैं
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में कहा कि अमान्य अथवा शून्य विवाहों से पैदा हुए बच्चे जायज हैं और वे अपने माता-पिता की संपत्तियों में अपना हक का दावा कर सकते हैं। यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला उस याचिका पर आया है जो इस जटिल कानूनी मुद्दे से संबंधित थी कि क्या गैर- वैवाहिक संबंधों से पैदा हुए बच्चे हिंदू कानूनों के तहत अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार हैं? या केवल माता-पिता द्वारा स्वयं जोड़ी गई संपत्तियों तक उनका हक सीमित है। शीर्ष कोर्ट की दो जजों की बेंच ने 31 मार्च 2011 को इस मसले को बड़ी बेंच को रेफर किया था।
जिसका फैसला देते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि पुत्रियों के लिए भी इसी प्रकार से समान अधिकार दिए गए हैं। हिंदू कानून के अनुसार, शून्य या अमान्य विवाह में पुरुष और महिला को पति-पत्नी का दर्जा नहीं मिलता है। शून्य विवाह एक ऐसा विवाह है जो शुरुआत से ही अमान्य होता है जैसे कि वह विवाह अस्तित्व में ही नहीं आया हो। इस विवाह को रद्द करने के लिए किसी डिक्री की जरूरत नहीं होती है। हालांकि, शून्य करार देने योग्य विवाह में उन्हें पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त है।